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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
सवत् की समस्या बहुत गम्भीर बन जाती है । इस सम्बन्ध मे और भी बाते विचारने की हैं। जैसे कि विक्रम संवत् का प्रारंभ चैत्रशुक्ला एकम् को हुआ वही मिती शक संवत् के प्रारम्भ की कैसे हुई ? तथा धवलादि प्राचीन ग्रंथो मे वीरनिर्वाण की काल गणना शक संवत् तक क्यो बताई ? उससे भी १३५ वर्ष पूर्व से चल रहे विक्रम संवत् तक क्यो नही बताई ? इत्यादि बातो को देखते हुये यही आभास होता है कि कही प्राचीन आचार्यो की दृष्टि मे शक संवत् ही विक्रम संवत् तो नही था ? क्या बाहुबली ही चामुण्डराय मंत्री नही थे ?
(४) चौथी दलील आपकी यह है कि - "परमारवशी राजा भोज उत्तरप्रात मे हुआ है और गोम्मटसार के नेमिचद्राचार्य दक्षिणप्रात मे । इसलिये इन नेमिचद्र के शिष्य माधवचद्र की संगति परमारवशी राजा भोज के साथ नही बैठाई जा सकती।" इसका उत्तर यह है कि - दक्षिणप्रात के मुनि उत्तरप्रातमे और उत्तरप्रातके मुनि दक्षिणप्रात मे पहिले भी आते जाते रहे है और अब भी आते जाते हैं । दक्षिणप्रात के मुनि श्री शातिसागर जी महाराज तो अभी २ बहुत अरसे तक उत्तरप्रात मे रहे है यह सर्वविदित है । और ऐसा कोई आचारशास्त्र का नियम भी नही है जिससे किसी एक प्रात के मुनि दूसरे प्रात मे न जा सके ।
मैं आशा करता हू कि मेरे भाई प० परमानन्दजी साहब तटस्थ होकर इसपर पुनः गम्भीरता से विचार करने की कृपा करेंगे ।