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क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र ]
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प्रोफेसर प० हीरालाल जी ने जैन-शिलालेख संग्रह भाग १ की प्रस्तावना मे इस कल्कि सवत् को विक्रम स० १०८६ सिद्ध किया है। यह तो निश्चित ही है कि वाहुबलि मूर्ति की स्थापना चामुण्डराय ने की थी। इसके अलावा चामुण्डराय कृत चारित्रसार खुले पत्र पृ० २२ मे "उपेत्याक्षाणि सर्वाणि..." यह श्लोक उक्त च रूप से उद्धृत हुआ है । यह श्लोक अमितगति श्रावकाचार परिछेच्द १२ का ११६वां है। इसमे उपवास का लक्षण बताया गया है । अमित गति का समय विक्रम की ११वी शताब्दी का उत्तरार्द्ध तक है। इत्यादि हेतुओ से चामुण्डराय का समय सभवत विक्रम की ११वी शताब्दी के चौथे चरण तक पहुँच जाता है। और नेमिचन्द्र भी श्री बाहुबलि स्वामी की प्रतिष्ठा के वक्त मौजूद होगे ही। इसके अतिरिक्त नेमिचन्द्र कृत द्रव्य संग्रह की ब्रह्मदेव कृत टीका के प्रारम्भ मे लिखा है कि "यह ग्रन्थ पहिले नेमिचन्द्र ने राजा भोज से सम्बन्धित श्रीपाल मण्डलेश्वर के राजसेठ सोम के निमित्त २६ गाथा प्रमाण लघु द्रव्यसग्रह बनाया था। फिर विशेष तत्वज्ञान के लिए बड़ा द्रव्यसग्रह बनाया।" इस कथन से भी सिद्ध होता है कि राजा भोज के समय श्री नेमिचन्द्र हुए हैं। राजा भोज का समय विक्रम की ११वी सदी का चौथा चरण इतिहास से सिद्ध है । जो प्रमाण द्रव्य-सग्रह और गोम्मटसार के कर्ता को भिन्न सिद्ध करने के लिए दिए जाते हैं वे भी कुछ विशेष दृढ नही हैं जैसे कि “गोम्मटमार के कर्ता नेमिचन्द्र तो सिद्धात चक्रवति थे और द्रव्यसग्रह के खासतौर से कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धातदेव थे।" यह हेतु ऐसा कोई भिन्नता का द्योतक नही है । क्योकि त्रिलोकसार की टीका मे स्वय माधवचन्द्र ने ग्रथ के प्रारम्म और अन्त मे अपने गुरु नेमिचन्द्र का 'सैद्धातदेव' नाम से उल्लेख किया है।