________________
६२४
* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
गुरु थे और नेमिचन्द्र उनके विद्या-गुरु थे। किन्तु इसमे बडी बाधा यह आती है कि उक्त प्रशस्ति मे क्षपणासार का रचना काल शक स० ११२५ दिया है जिसमे १३५ जोडने से विक्रम म० १२६० होता है । समय की यह सगति त्रिलोकसार के कर्ता नेमिचन्द्र के समय के साथ नहीं बैटती है। नेमिचन्द्र का समय विक्रम सवत् १०५० के लगभग माना जा रहा है। इसीलिए प्रेमीजी आदि इतिहासज्ञ विद्वानो ने उक्त क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र को त्रिलोकसार की टीका कर्ता माधवचन्द्र से भिन्न प्रतिपादन किया है।
किन्तु हमारी समझ इस विषय मे कुछ और है। हम दोनो माधवचन्द्र को अभिन्न समझते हैं और दोनो के समय की सगति इस तरह बैठाते है कि क्षपणासार का जो समय शक स० ११२५ दिया है उसे शालिवाहन सवत् न मानकर विक्रम स० ११२५ मानना चाहिए। चूकि माधवचन्द्र ने त्रिलोकसार गाथा ८५० की टीका मे शकराज का अर्थ विक्रम किया है। इसलिए उनके मत के अनुसार क्षपणासार मे दिये गए शक संवत् को भी विक्रम संवत् ही मानना चाहिए । सही भी यही है कि किसी भी ग्रथकार के कथन को उसी के मत के अनुसार माना जावे। इस तरह मानने से दोनो समय मे जो भारी अन्तर पड़ता है वह हलका-सा रह जाता है। इस हलके अन्तर को तो हम किसी तरह बैठा सकते है। इसके लिए हमे नेमिचन्द्र और चामुण्डराय के समय को कुछ आगे की ओर लाना पडेगा अर्थात् ये दोनो विक्रम की ११वी शताब्दी के चौथे चरण मे भी मौजूद
थे ऐसा समझना होगा । वह इस तरह कि बाहुबलि चरित्र मे ___ गोम्मटेश्वर की प्रतिष्ठा का समय कल्कि स० ६०० लिखा है।