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क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र ]
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3 श्रुतांबुनिधि नेमिचन्द्र मुनिपप्रसादा गतात्, प्रसाधितमविघ्नतः सपदि येन षट्खंडकम् ॥ अमुना माधवचन्द्र दिव्यगणिना वेविद्यचक शिना, क्षपणासारमकारि बाहुबलिसन्मन्त्रीश संज्ञप्तये । शककाले शरसूर्यचन्द्रगणिते जाते पुरे क्षुल्लके, शुभ दुन्दुभिवत्सरे विजयतामाचन्द्रतारं भुवि ॥
इन पद्यो मे कहा है कि - जिसने तपोनिधि, महायशस्वी सकलचन्द्र भट्टारक से दीक्षा लेकर तपस्या की उसके बल से तथा श्रुतसमुद्र पारगामी नेमिचन्द्र मुनि के प्रसाद से जिसे विशाल ज्ञानरूपी उत्तम चक्र मिला, उस चक्र से जिसने षट्खण्डमय सिद्धांत को जल्दी ही निर्विघ्नता से साध लिया ऐसे विद्य, दिव्यगणि और सिद्धातचक्री इस माधवचन्द्र ने क्षुल्लकपुर मे शक स० ११२५ मे दुन्दुभि नाम के शुभ सवत्सर मे बाहुबलि मन्त्री की ज्ञप्ति के लिए यह क्षपणासार ग्रन्थ बनाया है वह पृथ्वी मे चन्द्र तारे रहें तब तक जयवन्त रहे ।
इस प्रशस्ति के साथ यही पर क्षपणासार का आद्य भाग मंगलाचरण का मय टीका के एक श्लोक भी छपा है । उसमे भी नेमिचन्द्र और चन्द्र (सकलचन्द्र ) का उल्लेख करते हुए उन्हें माधवचन्द्र और भोजराज के मन्त्री बाहुबलि द्वारा स्तुत बताए गये हैं ।
इन उल्लेखो से पता लगता है कि ये माधवचन्द्र त्रिलोकसार की टीका की तरह क्षपणासार मे भी अपने को विद्य और नेमिचन्द्र का शिष्य लिखते है अत दोनो अभिन्न हैं । हो, क्षपणासार मे उन्होने सकलचन्द्र को भी अपना गुरु लिखते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि सकलचन्द्र उनके दीक्षा