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________________ ५२ क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र अद्यावधि माधवचन्द्र विद्यदेव की दो कृतियाँ उपलब्ध हैं। उनमे से एक त्रिलोकसार ग्रन्थ की सस्कृत टीका है जो छप चुकी है । और दूसरा सस्कृत मे बना क्षपणासार ग्रन्थ है जो अभी तक छपा नहीं है । उक्त त्रिलोकसार ग्रन्थ प्राकृत मे गाथाबद्ध आचार्य नेमिचन्द्र का बनाया हुआ है। उसी की सस्कृत टीका माधवचन्द्र ने लिखी है। इस टीका की प्रशस्ति मे माधवचन्द्र ने इतना ही लिखा है कि-"मेरे गुरु नेमिचन्द्र सिद्धातचक्री के अभिप्रायानुसार इसमे कुछ गाथाएं कही-कही मेरी रची हुई हैं वे भो आचार्यों द्वारा अनुसरणीय है।" इसके सिवा माधवचन्द्र ने यहां अपने विषय मे और कुछ अपना विशेष परिचय नही दिया है किन्तु क्षपणासार की प्रशस्ति मे उन्होने अपना परिचय कुछ विशेष तौर पर दिया है। वह प्रशस्ति वीर सेवामन्दिर देहली से प्रकाशित "जैन ग्रन्थ प्रशस्ति सग्रह" के प्रथम भाग के पृ० १६६ पर छपी है। इस प्रशस्ति मे प्रथम से लेकर पाचवें पद्य तक क्रमश यति वृपभ, वीरसेन, जिनसेन, मुनि चन्द्रसूरि, नेमिचन्द्र और सकलचन्द्र भट्टारक को नमस्कार करने के बाद दो पद्य निम्न प्रकार हैं तपोनिधि महायशस्सकलचन्द्र भट्टारकप्रसारित तपोबलाद विपुलवोधसच्चक्रतः ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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