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साधुओ की आहारचर्या का समय ]
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सिद्धहस्त मालूम पड़ते है। जिसका एक उदाहरण तो यह मूलाचार का प्रमाण हम बता चुके है। दूसरा और बताते है । हमने जन-गजट मे प्रकाशित पूर्वलेख मे प्रश्नोत्तर श्रावकाचार का प्रमाण देकर यह बताया था कि इसमे भी सूर्योदय से ७ मुहूर्त बाद क्ष ल्लक का भिक्षाकाल लिखा है जो करीव मध्याह्न का समय पडता है । इस प्रमाण का आशय आपने यह निकाला है कि -क्षल्लक के पहिले मुनि आहार लेते हैं, अत इससे मुनि का भिक्षाकाल मध्याह्न से पूर्व सिद्ध होता है ।" उत्तर मे निवेदन है कि सामान्यतया जो भिक्षाकाल मुनियो का होता है वही क्षुल्लको का होता है। शिष्टाचार के नाते साथ मे मुनि हो तो क्षुल्लक गोचरी के लिए मुनि से कुछ बाद मे उतरते है। दोनो के उतरने मे समय का कोई विशेष अन्तर नही होता है।
__इस सम्बन्ध मे वसुनन्दि श्रावकाचार गाथा ३०६ मे "गोहणम्मि" शब्द आया है । ( यह शब्द टिप्पणी मे लिखा है ) जिसका अर्थ होता है समीप मे-निकट मे । यानी मुनि के गोचरी पर उतरने के निकट ही तदनन्तर क्ष ल्लक का गोचरी का काल है । यह इसका मतलब हआ। अगर दोनो के गोचरी काल के बीच समय का ज्यादा अन्तर माना जायेगा तो “गोहणम्मि" शब्द का प्रयोग निरर्थक होगा।
आप जो मुनिका भिक्षाकाल मानते है उसमे और मध्याह्न मता २ घण्टे का अन्तर पडता है। इतना अन्तर आपके इस लिखने से दूर नही हो सकता है।
दूसरी बात यह है कि-यह जो क्ष ल्लक को गोचरी पर उतरने का कथन है वह भी वसूनन्दि श्रावकाचार आदि ग्रन्थो