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________________ ५६६ ] ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ बावन भी हम आपसे पूछते हैं कि यहां जो सूर्योदय से लेकर मध्याह्न से दो घडी पूर्व तक का कार्यक्रम टीकाकार ने लिखा है उसमे कही भी गोचरी का प्रथम टाइम का उल्लेख नही है तो यह कैसे माना जाये कि यह गोचरी का दूसरा टाइम है। यहा यह भी समझना कि - टीकाकार ने यहा मध्याह्न तक का ही कार्यक्रम क्यो लिखा ? आगे वा क्यो नही लिखा ? इस का कारण यह है कि यह प्रकरण एपणासमिति के वर्णन का है । मुनि का भिक्षा काल मध्याह्न होने से यहां तक का कार्यक्रम बताना ही उन्होने आवश्यक समझा इसलिये आगे का कार्यक्रम उन्होंने नहीं लिखा। अगर चार बजे भोजन का टाइम होता तो चे वहा तक का कार्यक्रम लिखते । मुनिधर्म प्रदीप ( कुन्युतागर कृत) की संस्कृत भावार्थ मे पृ० १२० पर वर्धमान - शास्त्री ने लिखा है " मुनियो के आहार का समय प्रात काल नौ बजे से ११ वजे तक है तथा दोपहर के अनन्तर डेढ बजे से साढे तीन बजे या चार बजे तक है इनमे से किसी एक समय में मुनि को आहार लेना चाहिए ।" जैनधर्म मीमासा भाग ३ पृ० २३४ पर सत्यमजु ने लिखा है - ११-१२ वजे साधु के सामायिक का समय होने से भिक्षाकाल पोरसी बताया है यह १० बजे के पूर्व ही और गर्मी मे ६ वजे करीब होता है | ( श्वे० मतानुसार ही पोरुपी = एक प्रहर दिन = यानि ३ घण्टा दिन चढ़े जबकि शरीर की छाया अपने शरीर के बराबर हो ) चूडीवाल जी की कुछ ऐसी विलक्षण प्रतिभा है जिसके बल से वे शास्त्रो के आशय को उलट-पलट कर देने में बड़े ही
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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