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साधुओं की आहारचर्या का समय ]
[ ५= ६
में मुनि का भोजनकाल एक स्वर से मध्याह्न ही लिखा है । श्रावक को १० वी अनुमति त्याग प्रतिमा और ११ वी उद्दष्टि त्याग प्रतिमा दोनो मे भी आहार का समय मध्याह्न ही शास्त्री मे बताया है । देखो सागार धर्मामृत और धर्मसग्रह श्रावकाचार लाटी सहिता आदि । ऐसी हालत मे मुनि का आहार समय मध्याह्न बाजिब ही है इसमे विवाद और शका की कोई जरूरत ही नही
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इस विषय मे मध्याह्न का समय कहाँ से कहाँ तक का माना जाये, यह एक समझने की चीज है । ऊपर हमने अनगार धर्मामृत के उदाहरण दिये हैं उनमे मध्य दिन से दो घडी पूर्व
5 प्रायश्चितसग्रह मे छेदपिण्ड ( इन्द्रनन्दि सहिता का चौथा अध्याय ) गाथा ७४ मे बताया है कि दिन के आदि अत की तीन-तीन घडी के बीच और पूर्वाह्न व अपराह्न मे अगर निर्ग्रन्थ साधु आहार करे तो उसका प्रायश्चित पचक ( ५ उपवास ) है देखो - नाली तिगस्स मज्भे जदि भुजदि सजदो अणाचिण्ण । पुव्वण्हे अवरण्हे व तरस पणत्र हवे छेदो ॥ इससे स्पष्ट सिद्ध है कि पूर्वान्ह और अपरान्ह का समय साधु के आहार का नही है । इसीसे सभी ग्रन्थो मे साधु का आहार समय एकमात्र मध्यान्ह ही बताया है । नीतिसार समुच्चय में भी इन्द्रनन्दि ने मध्यान्ह ही भिक्षाकाल बताया है देखो श्लोक ४१ | इसके साथ ही आगे श्लोक ५२ व ५३ मे इन्द्रनन्दि ने लिखा है कि भोजनादि क्रियाओ मे पूर्वाचार्यो का मत ही प्रमाण होता है जो कोई सेउ उल्लघन करता है वह मिथ्यादृष्टि है और अवन्दनीय है । यथा - " भोजन गमनेऽन्यत्र कार्ये वा यत्रकुत्रचित् । पूर्वाचार्यमत नून प्रमाण जिनशासने ॥५२॥ पूर्वाचार्यमतिक्रम्य य. कुर्यात् किचिदप्यसौ । मिथ्यादृष्टिरिति ज्ञेयो, न वदयश्च महात्मभि ॥५३॥