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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
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आमतौर पर मुनियो का भिक्षाकाल मध्याह्न नियत होने से ही इस प्रकार के उल्लेख किये गये है ।
आशाधर और मूलाचार के इन सब उल्लेखो से मुनियो का भिक्षाकाल का दिनार्द्ध का आसपास का समय सिद्ध होता है । जिसे शास्त्रो मे मध्याह्न नाम से लिखा हैं । ★
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इस विषय में और भी ग्रन्थोके प्रमाण देखियेप० मेधावीकृत श्रावकाचार में लिखा है कि
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गृही देवार्चनं कृत्वा मध्याह्न साबुभाजन | पावावलोकनं द्वास्यः कुर्यादुक्त्या सुधौतत्रत्॥८५॥
अर्थ - स्नानादि से पवित्र हो गृहस्थ, देवपूजा किये वाद मध्याह्न मे जलपात्र हाथ मे लेकर अपने घर के द्वार पर स्थित होकर भक्तिपूर्वक पात्र की प्रतीक्षा करे ।
इसी ७ वें अधिकार के श्लोक ६१ मे भी प्रोषधोपवास का वर्णन करते हुए लिखा है कि
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"सप्तमी और त्रयोदशी को दिन के मध्याह्न मे अतिथियो को आहार देना चाहिये ।"
कातिकेयानुप्रेक्षा मे लिखा है कि
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सत्तामि तेरस दिवसे अबरण्हे जाइऊण जिणभवणे । किच्चा किरिया कम्म उववासं चउविह गहियं ॥ ३७३ ॥
★ आशाधर ने सागार धर्मामृत अ० ४ श्लोक २८ मे लिखा है - उत्तमपुरुष ( मुनि आदि) एक बार भोजन करते हैं और वह भोजन दिन के मध्य मे करते हैं । इससे भी साधु के आहार का समय मध्या ही सिद्ध होता है ।