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साधुओ की आहारचर्या का समय ]
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, यह वर्णन सागारधर्मामृत के ६ वें अ० मे श्लोक १ से २४ तक किया है। ( लाटी सहिता अ० ६ श्लोक १८०-१८१ आदि मे भी लगभग ऐसा ही कथन है।)
अनगार धर्मामृत अ०८ श्लोक ६६ मे प्रत्याख्यान के अनागत आदि १० भेदो मे से कोटियुत नामक प्रत्याख्यान का स्वरूप इस प्रकार लिखा है
"कलको दिन की स्वाध्याय का समय बीत जाने पर यदि शक्ति होगी तो उपवास करू गा, वर्ना नही करू गा, ऐसा सङ्कल्प करके प्रत्याख्यान करने को कोटियुत प्रत्याख्यान कहते है।"
____ मध्याह्न से २ घडी पहिले तक का स्वाध्यायकाल माना जाता है जैसा कि ऊपर बताया गया है । इसके आगे मुनियो का भिक्षाकाल आ जाता है। इस बात को लेकर यहाँ कहा है कि उस वक्त शक्ति होगी तो उपवास करू गा नही तो नहीं करूंगा, ऐसे सङ्कल्प से पूर्व दिन मे नियम लेना । ऐसा ही कथन मूलाचार अ० ७ गाथा १४० मे किया है तथा मूलाचार अ० ४ गाथा १८० की टीका मे मिक्षा की व्याख्या ऐसी की है
'मध्याह्नकाले भिक्षार्थं पर्यटन भिक्षा।" अर्थ-मध्याह्न मे मुनि का भिक्षा के लिए घूमना भिक्षा कही जाती है।
तथा इसी मूलाचार के अ०७ श्लोक ८४ मे लिखा है कि -
"मध्याह्नकाल मे आये साधु का वहुमान करना लोकानुवृत्ति विनय है।"