SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुओ की आहारचर्या का समय ] [ ५७७ अर्थ - यदि मुनि को उस दिन भोजन करना हो तो पूर्व दिन जो प्रत्याख्यान अथवा उपवास ग्रहण किया था, उसका विधिपूर्वक निष्ठापन कर देना चाहिए और निष्ठापन के अनन्तर मध्यान्ह मे शास्त्रोक्त विधि के अनुसार भोजन करके अपनी शक्ति के अनुसार प्रत्याख्यान अथवा उपवास की प्रतिष्ठापना करनी चाहिए। उसके बाद क्या करना चाहिए सो बताते है - प्रतिक्रम्याथ गोचारदोषं नाडीद्वयाधिके । मध्याह्न प्राहृवत् वृत्त स्वाध्यायं विधिवद्भजेत् ॥ ३६ ॥ [अ०६] अर्थ - प्रत्याख्यानादि को अपने में स्थापित करने के बाद साधुओ को गोचरी सम्बन्धी दोषो का प्रतिक्रमण करना चाहिए । तदनन्तर पूर्वान्ह की तरह अपरान्हकाल मे भी मध्याह्न से २ घडी अधिक समय व्यतीत होने पर विधिपूर्वक स्वाध्याय का प्रारम्भ करना चाहिए । इस प्रकार मूलाचार और अनगार धर्मामृत इन दोनो ही ग्रन्थो मे स्पष्टतौर पर मध्याह्न से दो घडी पूर्व स्वाध्याय की समाप्ति किये बाद गोचरी का समय लिखा है । जो लोग दस बजे करीब गोचरी का जनरल टाइम मानते हैं उन्हे जानना चाहिये कि आशाधर जी ने साफ लिखा है कि मध्यान्ह से दो घडी पहिले जिस मुनि को उपवास रखना है वह अमुक काम करे और जिसे भोजन करना है वह गोचरी पर जावे। इससे साफ प्रगट होता है कि दो घडी कम मध्यान्ह से पहिले मुनि की गोचरी का कोई टाइम नही है । मध्यान्ह से २ घडी पहिले का अर्थ होता है दिन के १२ बजे से ४८ मि० पहिले अर्थात् ११ बजे । इसका तात्पर्य यही हुआ कि मुनिका कोई भी भिक्षाकाल दिनके मवाग्यारह बजे से पहिले नही है, बाद मे है ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy