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[ ★ जेन निबन्ध रत्नावली भाग २
अर्थ - इस प्रकार दिन की आदि ( प्रभान) मे दो घडी तक देववन्दनादि किये बाद साधुओ को स्वाध्याय करना चाहिए | स्वाध्याय का समय सूर्योदय से २ घडी बाद से लेकर मध्यान्ह से २ घडी पहिले तक का है । इस समय के भीतर साधुओ को स्वाध्याय करनी चाहिये ।
मध्याह्न से पूर्वोत्तर की दो दो घडी स्वाध्याय के लिये वर्जित है । इन चार घडियो के अस्वाध्यायकाल मे मुनि क्या करे ? इसके लिये आगे लिखा है कि जिसने स्वाध्याय समाप्त किया है ऐसा वह सुनि यदि उपवास रखना चाहता हो तो उसे क्या करना चाहिए यह बताते हैं
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ततो देवगुरू स्तुत्वा ध्यान वाराधनादि वा । शास्त्रं जपं वाऽस्वाध्यायकालेऽभ्यसेदु पोषित ||३५|| [मध्याय ६ ]
अर्थ उपवाम युक्त साधु को पूर्वान्हकाल का स्वाध्याय समाप्त होने पर मध्यान्ह की आगे पीछे की दो-दो घड़ियों मे जो कि अस्वाध्याय काला है उनमे अरहन्त और गुरु धर्माचाय की स्तुति वन्दना करके ध्यान करना चाहिए अथवा आराधनादि शास्त्रो का अभ्यास करना चाहिए, यद्वा पञ्चनमस्कारादि का जप करना चाहिए ।
" अप्रतिपन्नोपवासस्य भिक्षोर्मध्याह्नकृत्य माह ।" अर्थ - आगे उपवास न रखने वाले साधु को मध्यान्ह से क्या करना चाहिए सो बताते है
प्राणयात्रा चिकीर्षायां
प्रत्याख्यानमुपोषितम् । न वा निष्ठाप्य विधिवद् भुक्त्वा भूयः प्रतिष्ठयेत् ॥ ३६॥
[अ०] [2]