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५६८ ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ हनन करने वाले और धर्म की निंदा स्वरूप हैं ये महान दोष| अनाचार हैं क्षुल्लको को इनसे बचना चाहिये।
रेल मोटरादि की सवारी मे ईर्या समिति का पालन भी पालन भी नही है टिकिट के लिए भी याचना करनी पड़ती है अत क्षुल्लक को तीर्थयात्रा के निमित्त भी सवारी का उपयोग मन मे नही लाना चाहिये ।
जो कोई क्ष ल्लक-क्ष ल्लिका शीतकाल मे ओढ़ने के लिए विशेष चद्दर या रजाई आदि का उपयोग करते हैं वह भी शास्त्र विरुद्ध और अनाचार है। उन्हे अपने पद का ध्यान रखकर शीत परिषह को सहना चाहिये-किसी भी प्रकार के शिथिलाचार को प्रश्रय नही देना चाहिये।
आजकल के क्षुल्लको के लिये एक बात की तरफ हम और सकेत करना चाहते हैं -
बहुत से क्ष ल्लक आहारचर्या पर जाते वक्त अपनी पछबड़ी (चद्दर) अपने आवास परही रख जाते है यह दोषास्पद है क्योकि इस तरह आहारदाता गृहस्थको यह पहचानने मे नही आता कि ये क्ष ल्लक हैं या ऐलक वे भ्रममे पड़ जाते हैं इसके सिवा आवास पर चद्दर रखकर आने से उस चद्दर के चोरी चले जाने या किसी प्रकार से उसकी बरबादी-हानि भी सभव है अत क्ष ल्लको को आहारचर्या के वक्त अपनी पछे बड़ी अपने साथ ही रखना चाहिये।
श्रावक, त्यागी सभी का कर्तव्य है कि वे सदा जिनेन्द्र के पवित्र मार्ग को अक्षुण्ण बनाने रखने मे प्रयत्नशील रहेकिसी भी तरह मार्ग को भ्रप्ट-पतित नहीं होने दे। यही सच्ची जिनभक्ति है।
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