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श्रावक की ११वी प्रतिमा ]
बहुन से क्ष ल्लक महाराज कहते हैं कि अगर हम केश लौंच की उच्च क्रिया करते हैं तो इसमे क्या हानि है ? यह तो अच्छी ही बात है इसका उत्तर यह है कि- फिर तो मुनियो की तरह खडे-खडे आहार भी कर लिया जाय इसमे भी क्या हानि है ? यह भी उच्चक्रिया ही है। किन्तु क्ष ल्लको के लिए यह सब शास्त्र विरुद्ध है शास्त्र मे जिस पद के लिए जो मर्यादा कायम की है तदनुसार ही आचरण करना चाह्येि अगर ऐसा नहीं किया जायेगा तो फिर ब्रह्मचारी भी कहने लगेंगे कि हम भी यह केशलोच की उच्च क्रिया करेंगे (परचे छपवाकर महोत्सव करेंगे) तब उन्हे कैसे रोका जायगा ? इस तरह सारा ही मार्ग बिगड जायगा। अगर क्षुल्लको को उच्च क्रिया का ही शौक है तो पछे बडी आदि वस्त्रो का मोह छोडिये और फिर खूब केशलौच करिये कोई रोकने टोकने वाला नही। किन्तु उच्च किया का तो क्ष ल्लको के बहाना मात्र है अन्तरग मे तो महोत्सव, भोज परचे छपवाना, जय-जयकार आदि के रूप में अपनी नामवरी की भूख है जो वैगगी के लिए कोई शोभा की चीन नहीं । प्रस्तुत उसे हीन मार्ग की ओर ले जाने वाली है।
(७)(८) जो क्ष ल्लक कपडे की पगरखी, छतरी, दोनटूथब्रश, साबुन, घड़ी, फाउन्टेन पेन, पखा, चश्मा, बिजली, तेल, खसखस की टाटी हीटर, रेल मोटर, आदि सवारी वगैरह का उपयोग करते है वे पदविरुद्ध क्रिया करते है क्योकि इन सब वस्तुओ का तो ६वी परिग्रहत्याग प्रतिमा में ही सर्व प्रकारेण त्याग हो जाता है पुन उसका ग्रहण करना उच्छिष्ट-सेवी बनना है यह तो आगे की कक्षा में आकर पीछे का पाठ भूलने के समान है गृहत्यागी वैरागीके लिये ये सब आरम्भ परिग्रह किसी तरह शोभास्पद नही ये तो उसकी स्वतन्त्रता निराकुलता का
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