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________________ [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ दो वस्त्र रखने वाले आजकल के क्षुल्लक के लिए तो प्राचीन अर्वाचीन किसी भी आचार्य ने पिच्छी रखना नही | बताया है । ५६६ ] Shrf ( ६ ) इसी तरह आजकल के ( दो वस्त्रधारी) क्षुल्लक के लिए किसी भी शास्त्र में लोंव करने का विधान नही है फिर गुप्तस्थान या जाहिर मे करने का तो प्रश्न ही नही उठता । आजकल के जो कोई क्षुल्लक दाढी-मूंछ के बालो को तो रेजर या वाल-सफा लोगनो से साफ कर डालते हैं और शिर के बालो के लिए केशलोच महोत्सव कराते हैं या परचे छपवाते हैं वह सव ढोंग और महान् विडम्बना है धर्म का अपवाद है- कदाचार है । क्रियाकलाप के अन्त मे ( १० ३३८ पर) क्षुल्लक दीक्षा विधि सग्रहीत है जो न जाने किसकी बनाई हुई है उसमे गोबर आदि को क्षुल्लक के मस्तक पर रखने का भी कथन है और दीक्षा के वक्त क्षुल्लक का लोच करना बताया है इससे कोई कोई आज के क्षुल्लक के लिए लोच करना विधेयक बताते है किन्तु वह ठीक नही क्योकि पूर्वकाल मे क्षुल्लक एक वस्त्रधारी की ही सज्ञा थी (जो आज ऐलक कहलाते है) अत दो वस्त्रधारी आजकल के क्षुल्लकों के लिए इस दीक्षा विधि से भी केशलोच का विधान सिद्ध नही होता । क्षल्लक शब्द से भ्रम मे नही पड़ना चाहिये । इस दीक्षा विधि मे क्षल्लक शब्द के आगे ब्रकेट मे 'आर्य-ऐलक" ऐसा स्पष्ट लिखा है इससे यह ऐलको की ही दीक्षा विधि सिद्ध है आज के दो वस्त्र धारी क्षुल्लको से उसका कोई सम्बन्ध नही ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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