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श्रावक की ११वी प्रतिमा ]
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आपने लिखा - " एक वस्त्र धारण करने का मतलब यह दिखता है कि एक बार उपयोग मे लाने के लिए एक ही वस्त्र लेना दूसरा नही परन्तु दूसरे दिन बदलने के लिए दूसरा वस्त्र पास मे रखने का निषेध नही है दो वस्त्र एक साथ धारण करने मे निषेध (दोष) है ।"
समीक्षा - प्राचीन साहित्यकारो ने जो क्षुल्लक के लिए एक ही वस्त्र धारण करना बताया है उसका तात्पर्य ही यह है कि दूसरा वस्त्र न तो अपने पास रखे और न धारण ही करे परिग्रह की दृष्टि से पास रखने और धारण करने मे कोई अन्तर नही है क्योंकि लखपति करोडपतिकी जेब मे लाख करोड रुपये पडे नही रहते फिर भी वे उन रुपयो के मालिक अधिकारी होने से लखपति करोडपति कहलाते हैं । अत दूसरे वस्त्र का पास मे रखना एक तरह से उस दूसरे वस्त्र का धारी- परिग्रही होता ही है । अगर ऐसा नही माना जायेगा तो कोई भी एक वस्त्रधारी अपने पास अनेक वस्त्र भी रख सकेगा ऐसी हालत मे गृहस्थी में और इसमे कोई विशेष और नही बन सकेगा ।
परिग्रह का सम्बन्ध किसी वस्तु के धारण करने या पास मे रखने से ही नही किन्तु उसके ममत्वभाव से है इसीलिए सूत्रकार ने परिग्रह का लक्षण "मूर्च्छा परिग्रह" बताया है ।
विहार के वक्त इस दूसरे वस्त्र को हाथ आदि मे रखना लेना ही पडेगा । तब दूसरे वस्त्र का धारण करना हो जायेगा तथा इस दूसरे वस्त्र की सार सभाल की चिन्ता रखने से स्वतन्त्रता निराकुलता मे भी काफी बाधा उत्पन्न होगी अत दूसरा वस्त्र पास मे रखना किसी तरह विधेय नही है । यह तो