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श्रावक की ११वीं प्रतिमा
जैनसन्देश के अभी हाल ही के ( १३, २० मार्च ६६ के) अको मे उसके आदरणीय संपादक प० कैलाशचन्द जी शास्त्री ने स्वर्गीय प० जुगलकिशोरजी मुख्तार के लेखानुसार ( मुख्तारमा० का यह लेख सन् २१ की जैन हितैषी भाग १५ मे ही प्रकाशित नही हुआ है, किन्तु परिवर्द्धित - सशोधित रूप से अनेकान्त वर्ष १० की अन्तिम किरण ( जून ५० ) मे भी प्रकाशित हुआ है ) ग्यारहवी प्रतिमाधारी क्षुल्लक का स्वरूप लिखा है । उस सम्बन्धमे विद्वज्जनो के विचारणार्थ में भी यहाँ कुछ लिखने का उपक्रम करता हू ।
कुन्दकुन्द के सूत्र प्राभृत की २१वी गाथा मे इसका स्वरूप सक्षेप से इस प्रकार लिखा है
दुइयं च वुतलगं उक्किट्ठ अवरसावयागं च । भिक्खं समइ सपत्तो समिदोभासेण मोणेण ॥२१॥
इसमे लिखा है कि मुनि के बाद दूसरा लिंग गृहत्यागी उत्कृष्ट श्रावको का है यानी ११वीं प्रतिमाधारी का है । वह पात्र को हाथ मे लेकर भाषा समिति ( धर्मलाभ शब्द ) से या मौन से भिक्षा के लिये भ्रमण करता है ।
स्वामी समन्त भद्र ने भी रत्नकरण्ड श्रावकाचार मे