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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
विशाल कीर्ति ११ वज्रधर १२ चन्द्रानन १४ भुजगम १५ ईश्वर
(भद्र- वाहु ) १७ वीरसेन
१८ महासेन
१६ देवयश
५३४ ]
६. सूर्यप्रभ १०
१३ चन्द्रवाहु १६ नेमप्रभु ( यशोधर ) २० अजितवीर्य ।
उपरोक्त कुछ ग्रन्थो मे क्रमश चार तीर्थंकरों को जबूद्वीप विदेह मे आठ को धात की खड मे और आठ को पुष्करार्ध द्वीप मे बताया है तदनुसार यह बात इस लेख के शुरू मे भी व्यक्त की गई है किन्तु प्राचीन महापुराण (भारतीय ज्ञान पीठ, दिल्ली से प्रकाशित ) पुण्याश्रव कथा कोश ( जीवराज ग्रन्थमाला शोलापुर से प्रकाशित ) मे इससे विपरीत कथन पाया जाता है जिनका विवरण मयपृष्ठ के इस प्रकार है :
सीमधर = धातकी खण्ड द्वीप पूर्व विदेह - आदिपुराण ( जिनसेन कृत ) प्रथम भाग पृष्ठ १४५ तथा पुण्याश्रव कथा कोश पृष्ठ २४८ ।
युगधर = पुष्करार्ध दीप पूर्व विदेह - आदिपुराण प्रथम भाग पृष्ठ १४६ तथा उत्तरपुराण ( गुणभद्र कृत) पृष्ठ ८७ एव पुण्याश्रव कथा कोश पृष्ठ २४५ व २४८ ।
स्वयप्रभ = जम्बूद्वीप पूर्व विदेह - आदिपुराण प्रथम भाग पृष्ठ १६६ उत्तर पुराण पृष्ठ १४, १६६, १७३, ३४१, ४११ ।
स्वयप्रभ - धातकी खण्ड द्वीप - उत्तर पुराण पृष्ठ ५०-५१ ।
इस विषय मे एक विशेष बात और ज्ञातव्य है समाधि भक्ति के अन्तर्गत एक गाथा पाई जाती है
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