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श्री सीमंधर स्वामी का समय ]
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अलग थी । भिन्न आम्नाय होने से ही यही नही अन्य भी कितना ही कथन आपस मे मिलता नही है । यह समस्या श्रुतसागर सूरि के सामने भी आई दिखती है। इसी से उन्होने इसका समाधान करते हुए षट् प्राभृत की संस्कृत टीका के अन्त ( पृष्ठ ३७६ ) में इस प्रकार लिखा है
" पूर्व विदेह पुण्डरी किणी नगर वदित सीमंधरा पर नाम स्वयं-प्रभ जिनेन
01.10. .. 37
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अर्थ : पूर्व विदेह की पुण्डरी किणी नगरी के जो सीमंधर हैं उन्ही का दूसरा नाम स्वयप्रभ है 1 )
""यह समाधान कहाँ तक समुचित है इस पर विशेषज्ञ विद्वान् विचार करें। बृहज्जैन शब्दार्णव प्रथम भाग मे, मोक्षमार्ग प्रकाशक के प्रारम्भ मे, पुण्याह वाचन मे, द्यानतराय जी जौहरीलाल, जी थानसिंह जी कृत बीस विहरमान पूजाओ मे, संस्कृत विद्यमान विशति जिन पूजा आदि मे बीस तीर्थंकरो के नाम इस प्रकार है --
"
१ सीमधर
५ सजातक
२ युग्मधर
३ बाहु ४ सुबाहु ६ स्वयंप्रभ ७ ऋषभानन ८. अनतवीर्य
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विदेह मे सीमधर नाम के तीर्थकर तो हमेशा ही रहते है कमी उनका अभाव नही होता। एक के बाद दूसरे इसी नाम से निरन्तर होते रहते हैं ऐसी ही मान्यता है (जैमे हिन्दुओ मे शकराचार्य और जैन भट्टारको मे चारु कीर्ति स्वामी आजतक होते भारहे हैं कभी भी इस नाम से पट्ट खाली नही रहता ) - इसी से श्रुतसागर सूरि ने ऐसा समाधान किया है इसके सिवा और कोई तरीका ही नही था ।