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पंच अरिजयणामे पंच य मदिसायरे जिणे बंदे । पंच जसोयरणामे पच य सीमंदरे बदे |दी।
श्री सीमंधर स्वामी का समय ]
इसमे बताया है कि - प्रत्येक विदेह क्षेत्र मे अरिंजय, मतिसागर, जसोधर, और सीमधर ये चार-चार तीर्थकर विशेष जुदा ही होते हैं ।
इस सब से यह फलित होता है कि कही एक रूपता एक नियम नही है एक सीमधर स्वामी भी पांचो मेरु सम्बन्धी पाँचो विदेहो मे एक ही समय मे पाये जाते है यह नाम सर्वत्र शाश्वत रूप है । इस विषय मे ओर भी कोई मथितार्थ हो या कोई सशोधन की स्थिति हो तो विद्वानो से निवेदन है कि - वे उसे अवश्य प्रकट करे । शास्त्र समुद्र अथाह है ।
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विशेष जातव्य
विदेह मे २ - ३-५ क्याणको के धारी तीर्थंकर होते हैं ।
भरत हैमवत हरि विदेह रम्यक हैरण्य वर्तवत वर्षा क्षेत्राणि १।१०।। (तत्वार्थसूत्र, मध्याप ३) जम्बूद्वीप के दक्षिणात मे भरतक्षेत्र और उत्तरान्त में ऐरावतक्षेत्र है ( दक्षिण से उत्तर ) भरतक्षेत्र के बाद हिमवत, हरि वर्ष है फिर मेरु पर्वत है उसके आसपास विदेह क्षेत्र है वह दो विभाग में है मेरु से पूर्व मे पूर्व विदेह और पश्चिम ने पश्चिम विदेह है | विदेह के पोछे मेरु के उत्तर से रम्यक वर्ष फिर हिरण्यवत और अन्त मे ऐरावत क्षेत्र है ।
मेरु के दक्षिण और उत्तर मे महाविदेह है जो देवकुरु और उत्तरकुरु के नाम से प्रसिद्ध है जहाँ सदा भोग भूमि रहती है । अत. यहाँ सदा पहला (६ठा) द्वारा वता है । किन्तु अन्यत्र सर्वत्र विदेह मे सदा कर्म भूमि रहने से अवसर्पिणी का चौथा आरा और उत्सर्पिणी का तीसरा आरा क्रमश होता रहता है ।