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वास्तुदेव ]
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"आयें, विवस्वत्, मित्र, भूधर, सविंद्र, साविंद्र, इन्द्रराज, रुद्र, रुद्रराज, आप, आपवत्स, पर्जन्य, जयंत, भास्कर, सत्यक, भृशुदेव, अतरिक्ष, पूषा, वितथ, राक्षस, गंधर्व, भृंगराज, मृषदेव, दौवारिक, सुग्रीव, पुष्पदत, असुर, शोष, रोग, नाग, मुख्य, भल्लाट, मृग, आदिति, उदिति, विचारि, पूतना, पापराक्षसी और चरकी ये ४० नाम हैं ।"
वास्तुदेवो के इसी तरह के नाम जैनेतर ग्रन्थो मे लिखे मिलते है (देखो सर्वदेव प्रतिष्ठा प्रकाश व वास्तु विद्या के अजैन ग्रन्थ ) वही से हमारे यहाँ आये है । वे भी आशाधर के बाद के क्रिया- कांडी ग्रन्थो मे - पुन्याहवाचन पाठो मे । यह बलि -विधान इसी रूप में आशाधर पूजा-पाठ नाम की पुस्तक में भी छपा है । वहाँ दस दिग्पालो को भी वास्तुदेवोमे गिना है । जैनेतर ग्रन्थो मे ऐसा नही है ।
एक सधि जिन सहिता मे भी वास्तुदेव बलि विधान नामक २४ वा परिच्छेद है जिसमे भी उक्त ४० नामो के साथ दशदिग्पालो के नाम है, ऐसा मालूम होता है कि - वास्तुदेवो को बलि देने के पहिले दिग्पालो का बलिविधान लिखा हो और लगते ही वास्तुदेवो को बलि देने का कथन किया है इस तरह से भी वास्तुदेवो मे दिग्पाल देव सामिल हो सकते है । अन्य मत मे वास्तुदेवो को बलि देने की सामग्री मे मधुमास आदि है । जैन मत मे मांस को सामग्री मे नही लिया है तथापि मधु को तो लिया ही है ।
एक संधि सहिता के उक्त परिच्छेद के १७ वे श्लोक मे मजेदार बात यह लिखी है-बलि देते वक्त बलि द्रव्यो को लिये