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[ * जन निबन्ध रत्नावनी भाग २
हा आभुषणो में भुमित कोई पन्या या वेण्या अपया कोई मदमानीन्त्री होनी चाहिये । यथा
बतिप्रदानकारी तु योग्या स्मार बलिधारणे। भूपिता कन्यका वा त्या वेश्या वा मत्तकामिनी ॥१७॥
[परिच्छेद २४] ऐगा गायन नमिवद्र निष्ठा पाठ मे पे इस प्रकरण के पृष्ठ ४ नोक ११ ने भी प्रतिभामित होता है।
जिन शास्त्रों मे माफ तौर पर अन्यमतके माने हुए देवीकी आगधना गा काथन लिया है और उनकी आराधना विधि मे एनी चाहिात वाले वेश्या आदि की लिखी है। उन शास्त्री को हम केवन पर देवर जिनवाणी मानते रहे कि वे सस्कृत प्राकृत में लिग है और किन्ही जैन नामधारी बडे विद्वान के रचे हुये है जब ना हमारे में यह आगममुटता बनी रहेगी तब तक हम जैन धम का उज्ज्वला नहीं पा सकेंगे। उन मिथ्या देवो का ऐना कुछ जाल छाया हुआ हगि पटित लोग भी इनके दुर्मोह ; से ग्रमित है । शुद्धाम्नायो १० शिवजोरामजी राची वालो का लिखा एक प्रतिष्ठा ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है जिसमे इन सभी वास्तुदेवो की उपासना का वर्णन किया है। बलिहारी है उनके शुद्धाम्नाय की।
वास्तुदेवों के जो नाम जन गन्थों मे लिखे मिलते हैं उनकी अन्यमत के नामो से कही २ भिन्नता भी है। जैसे अन्यमत के नामअर्यमा, मवित सावित्र, शेष, दिति विदारि । इनके स्थान मे जैनमत के नाम क्रम से ये है-आर्य, सविंद्र, साविद्रा शोप, उदिति और विचारि । इन नामो मे थोड़ासा ही अक्षर