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क्या कभी जैनी भाई भी विद्वानों का आदर करना सीखेंगे ?
"वीरवाणी" के हाल ही के अक में बम्बई मे इन वीस वर्षों में किसी जैन विहान का स्थायी निवास न होने पर विता व्यक्त की गई है। अभी हुआ हो क्या है ? नागे २ देखना होता है क्या ? जैन विद्वानों के प्रति जैसा रवैय्या दि० जैन समाज अपना रही है, यदि यही हाल रहा तो थोड़ेही वर्षों मे बम्बई ही नही जय शहने के लिये भी यह चिता उत्तरोत्तर बढ़ती ही जायेगी। हम देखते है कि जिस दि० जैन समाज मे विद्वत्ता की प्राप्ति से न तो जीविका की समस्या हल होती है और न ही उसका विद्वता के लिहाज से सन्मान ही होता है । उस समाज मेला विहान बनने की किसको इच्छा होगी ? यहाँ तो सब धान २२ पसेरी है, यह तो वणिक समाज है । इस समाज मे विद्वानों की कदर नही है । धनाढ्यों की कदर हैं । यहाँ विद्या से अधिक धन को महत्व दिया जाता है। एक विद्वान् शास्त्रोक्त बात कहे तो पंचायत में उसकी कोई नही सुनेगा । वहाँ श्रीमतो का ही बोलवाला देखा जाता है उन्होंने जो कुछ कह दिया तो उनकी हाँ में हाँ सब मिला देंगे। हाल है । " धनवान् बलवान् लोके धनादुद्भवति पडितः " की
ऐसा इस समाज का