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जैन कर्म सिद्धात ]
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हो गया है या माइड मे गर्मी बढ गई दिखती है, इसलिये इसका अच्छा इलाज कराना चाहिये । अनेक अच्छे-अच्छे डाक्टरो ने उस बालक के मस्तिष्क की जाच करके कहा कि इसका मस्तिष्क पूर्णत शुद्ध और निर्विकार है । जैसा उत्तम मस्तिष्क इसका है वैसा अन्य बालको मे मिलना कठिन है । तब लाचार होकर माता-पिता ने उस बालक के कथनानुसार उसके जन्मातर के माता-पिता की खोज कराई । वालक ने जन्मातर के अपने माता पिता का निवास काठियावाड मे राजकोट के पास एक ग्राम में बताया था । भारत सरकार द्वारा शोध की गई तो उसके माता-पिता आदि के नाम उस बालक की पूर्व जन्म में मरने की तारीख, उसके बताये घर के काम सब ज्यों के त्यो मिल गये । मरण के ।। मास बाद उस बालक ने आयरलैंड मे जन्म लिया था । पूर्व जन्म मे उस बालक के जीव ने एक पडोसी बुढिया की रुग्णावस्था मे सेवा की थी और गरीब लोगो को वस्त्र दान से बाटे थे । जिन वस्त्रो को वह दान मे देता था, एक दिन उनमे सर्प छिपकर बैठ गया और चालक के पूर्वभव के जीव को काट खाया उससे मरकर वह आयरलैंड में एक करोडपति के यहाँ पैदा हुआ
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इस प्रकार कर्म सिद्धांत के विपयो में जितनी युक्तियुक्त और सूक्ष्म विवेचना जैनधर्म मे की गई है वैसी अन्य धर्म मे नही है । अनेकातवाद, अहिंसावाद की तरह कर्मवाद भी जैनधर्म का एक खास सिद्धांत है । कर्म क्या है ? क्यो बन्धते हैं ? बन्धने के क्याक्या कारण है ? जीव के साथ वे कब तक रहते हैं ခု क्या-क्या फल देते हैं ? उनसे छुटकारा कैसे हो सकता है ? इत्यादि वातों का खुलासा केवल जैन-धर्म मे ही मिलता है और बिल्कुल वैज्ञानिक ढंग से मिलता है ।
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