________________
+
[ કર્
उत्तर उन्ही आचार्य उमास्वामी ने "पर पर सूक्ष्म"
इस सूत्र द्वारा कार्मण शरीर को अन्य सब शरीरो से सूक्ष्म भी लिखा है । इस प्रकार आचार्य श्री ने दोनो कथन करके यह अभिप्राय प्रकट किया है कि कार्मण शरीर का गठन ऐसा ठोस है कि उसकी प्रदेश संख्या अन्य शरीरो से अनन्तगुणी होते भी वह अन्य शरीरो जैसा स्थूल नही है । जैस रुई का ढेर और लोहे का गोला । लेकिन इसका अर्थ यह भी नही है कि कार्मण शरीर जब इतना ठोम है तो उसकी गति अन्य पौद्गलिक पदार्थों से रुक जाती होगी ? उसकी बनावट ही कुछ ऐसी जाति के परमाणुओ से होती है जिससे वह वज्रपटलादि मे भी प्रवेश कर जाता है । जैसे अग्नि लोहे मे प्रवेश कर जाती है ।
जैन कर्म सिद्धात ]
•
इन सभी शरीरो मे से एक कार्मण शरीर ही ऐसा है " जिसके सहयोग से यह जीव अनेक योनियो मे जन्म ले-लेकर 'नाना प्रकार की चेष्टाये करता रहता है । यही वह कर्म पिण्ड है जो इस जीव के लिए ससार का बीज भूत है और विविध अनर्थ परम्पराओ का कारण बना हुआ है । जैसे रेशम का कीट अपने ही मुँह से रेशम के तार निकाल निकाल कर आप ही उनसे लिपटता रहता है । इसी तरह यह जीव स्वय ही रागद्वेषादि कलुषित भाव कर-करके आप ही इन दुखदायी कर्मों से बन्धता रहता है | कर्मों का वध इस जीव के किस तरह हो जाता है । इसके लिये शास्त्र वाक्य ऐसा है
जीवकृतं परिणाम निमित्तमात्र प्रवद्य पुनरन्ये । स्वयमेव परिणमतेऽत्र पुद्गला कर्मभावेन ॥
अर्थ जीव के किये हुए परिणामो को निमित्त बना कर