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४६२ ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ इस जीव के औदारिक (मनुष्य तियंचो का शरीर) वैक्रियिक (देव नारकियो का शरीर) आहारक तेजस (मृतक और जीवित शरीर मे जो काति का भेद है वह तैजस शरीरकृत है। मृत्यु होने पर तेजस शरीर जीव के साथ चला जाता है।) और कार्मण ये ५ शरीर हैं। इनमे से कार्मण शरीर को कम और शेष शरीरों को नो कर्म कहते है। जीव और कर्मा के बन्ध को कर्मवन्ध कहते हैं तथा जीव और अन्य - शरीरो के बन्ध को नोकर्मवन्ध कहते है। भवातर मे जाने वाला जीव पूर्व शरीर को छोडे वाद जब तक नया शरीर ग्रहण नही. करता है तब तक के अन्तराल मे उसके तेजस और कार्मण ये दो सूक्ष्म शरीर साथ मे रहते हैं। इस अन्तराल का काल जैनागम में बहुत ही थोडा तीन समय मात्र अधिक से अधिक बताया है। अन्तराल मे यह कार्मण शरीरही उसे किसी नियत स्थान पर ले जाकर नया शरीर ग्रहण कराता है। उक्त तेजस और कार्मण शरीर ससार दशा मे सदा इस जीव के साथ रहते हैं। जब यह जीव भवातर मे जाकर नया शरीर ग्रहण करता है। तव सदा साथ रहने वाले दो शरीर और एक नया प्राप्त शरीर इस प्रकार जीव के कुल तीन शरीर हो जाते है। जिस प्रकार दूध मे जल, मिश्री आदि बुल मिल जाते है। उसी प्रकार इन तीनो शरीरो का आत्मा के साथ मिश्रण हो जाता है। सदा साथ रहढे वाले तेजस और कार्मण ये दो शरीर इतने मूक्ष्म है कि वे हमारे कभी इन्द्रियगोचर नही हो सकते है।
प्रश्नः "अनन्तगुणे परें" इस सूत्र के द्वारा सूत्रकार उमास्वामी ने औदारिकादि शरीरो से कार्मण शरीर के परमाणु अनन्तगुणे अधिक लिखे हैं। इससे तो कार्मण शरीर अन्य सब शरीरो से बडा होना चाहिये।