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तिलोयपण्णत्तो - अनुवाद पर गलत स्पष्टीकरण
हमने 'जंनगजट' २१-८-६७ मे एक लेख - " नदीश्वर द्वीप मे ५२ जिनालय" शीर्षक से प्रकाशित कराया था, उसमें हमने तिलोयपण्णत्ती अधिकार ५ गाथा ६७ के अनुवाद को गलत बताया था। उस पर श्री अनुवादक जी सा० ने सितम्बर ६७ के 'जैनगजट' मे एक 'स्पष्टीकरण' प्रकाशित कराते हुए यहाँ तक लिखा है कि- 'उस अनुवाद मे कुछ भूल नही दिखी ।" इसका मतलब यह हुआ कि हमने जो अनुवाद की भूलें प्रदर्शित की थी वे गलत थी किन्तु ऐसा नही है । अनुवादकजी का स्पष्टी - करण भी उस अनुवाद की भूलो को नही मिटा सका है, हम उसी पर प्रकाश डालते हैं ।
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उक्त गाथानुवाद इस प्रकार है :
"वापियो के दोनो बाह्य कोनो मे से प्रत्येक मे दधिमुखों के सदृश सुवर्णमय रतिकर नामक दो पर्वत है ।"
हमने इस पर यह आपत्ति की थी कि - दोनो बाह्य कोनो मे से प्रत्येक मे दो रतिकर के हिसाब से चार रतिकर हो जायेंगे जब कि होने चाहिए दो ही, अत अनुवाद सदोष है ।
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