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[ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
इस पर अनुवादकजी ने स्पष्टीकरण किया है कि"अनुवाद मे 'दो-दो' ऐसी द्विरुक्ति नही है, अत उसका अभिप्राय यही है कि-वापियो के वाह्य दो कोनो मे से प्रत्येक मे रतिकर पर्वत है जो सख्या में दो होते हैं।"
समीक्षा- यह स्पष्टीकरण भी निरर्थक है क्योकिदो-दो ऐसी द्विरुक्ति से तो सिर्फ स्पष्टता होती है विना द्विरुक्ति के भी अर्थ वही होता है जो द्विरुक्ति के होने पर होता है । अगर ऐसा नहीं मानेगे तो तिलोयपण्णत्ती की निम्नाकित गाथाओ केआपके द्वारा किए अनुवाद भी उलटे गलत हो जायेंगे।
देखो अधिकार ६ गाथा ७१ का अनुवाद - "इस प्रकार ये प्रत्येक इन्द्रो के सात सेनाये होती हैं"।
यहाँ अगर 'सात' सख्या मे द्विरुक्ति नहीं होने से आपके स्पष्टीकरणानुसार सब इन्द्रो की कुल मिलाकर-सात ही सेनाये माने तो बिल्कुल गलत होगा अत 'प्रत्येक' शब्द के साथ मे होने से ७ की सख्या सव इन्द्रो के साथ अलग-अलग लागू होगी। प्रत्येक शब्द ही स्वत द्विरुक्ति को द्योतित कर देता है अत. ऐसे स्थलो मे द्विरुक्ति के होने न होने से कोई अन्तर नहीं पड़ता।
"प्रत्येक" शब्द के साथ जहाँ संख्यावाची शब्दो मे दिरुक्ति नहीं की गई है ऐसे आप ही के द्वारा किये गाथानुवाद निम्न प्रकार है
अधिकार ६ गाथा ७४-७५ । अ०८ गाथा २३२-२३३, २६३ से २६५, ३१०-३११-३१८, ३२१-३२२ ।