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नंदीश्वर द्वीप मे ५२ जिनालय ]
त्रिलोक प्रज्ञप्ति मे इसी प्रकरण में गाथा ६६ मे लोकविनिश्चयकर्त्ता का मत दिया है। जिसमें प्रत्येक वापी के चार कोणो मे चार रतिकर पर्वत लिखे है । ऐसा कथन तत्वार्थराजवार्तिक (अध्याय ३ सूत्र ३५ की टीका ) और हरिवंश पुराण ( सर्ग ५ श्लोक - ६७५ ) मे भी किया है । किन्तु इन दोनो ही ग्रन्थो मे यह स्पष्ट कर दिया है कि इन ६४ रतिकरो मे से बाह्यकोणी बाले ३२ रतिकरो पर ही ३२ जिनालय है । अभ्यतर कोणो के ३२ रतिकर तो देवो के क्रीडा स्थान है । इस बात को न समझकर हरिवंशपुराण के पृष्ठ ११६ ( ज्ञानपीठ से प्रकाशित ) पर अनुवादक ने वहा टिप्पणी देकर इस कथन को भ्राति पूर्ण बता दिया है । जो ठीक नही है ।
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श्वेताम्बर ग्रन्थ लोक प्रकाश के २४ वे सर्ग मे इस सम्बन्ध मे कुछ विशेष कथन निम्न प्रकार किया है
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देवरमण, नित्योद्योत, स्वयं प्रभ, और रमणीयक ये चार अजनगिरियो के नाम है । आकार इनका गोपुच्छ सदृश है । नीचे से ऊपर चौडाई मे कम होते चले गये हैं। ऊंचाई इनकी ८४ हजार योजन की है। पृथ्वी पर चौडाई १० हजार योजन की और मस्तक पर 9 हजार की है । वापिका के चारो ओर के वनों की लम्बाई एक लाख योजन की और चौडाई पांचसी योजनों की है । दधिमुख पर्वत की ऊंचाई ६४ हजार योजनो की है । वापियो के अन्तराल मे दो-दो रतिकर पर्वत है । नदीश्वर द्वीप की प्रत्येक दिशा मे तेरह २ के हिसाब से कुल ५२ जिनालय चारो दिशाओ मे है । जिनालयो की ऊचाई ७२ योजन की है ।