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४५६ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ अध्ययन ही नही किया बल्कि जिनकी भी जानकारी मिली उन , सिद्ध महात्माओके पासजा जाकर अपनी जिज्ञासाओका समाधान , भी करते रहे। धीरे २ उनका परलोक, पुनर्जन्म, कर्मफल और आत्मा की अमरता पर विश्वास हो चला था। यह घटना तो उनके जीवन मे अप्रत्याशित ही थी। और उसने उनके उक्त विश्वास को निष्ठा मे बदल दिया।
एक वृद्ध सन्यासी शव को क्यों खीच रहा है ? इस रहस्य को जानने की अभिलाषा रखते हुये सब लोग एक टक देखने लगे कि-वृद्ध सन्यासी इस शव का क्या करता है ?
__वह सन्यासी उस शव को खीच कर एक वृक्ष की आड मे ले गया। फिर थोडी देर तक सन्नाटा छाया रहा। कुछ पता नहीं चला कि वह क्या कर रहा है ? कोई १५-२० मिनट पीछे ही दिखाई दिया कि वह युवक जो अभी शव के रूप मे नदी मे बहता चला आ रहा था उन्ही गीले कपडो को पहिने वृक्ष की आड मे से बाहर निकल आया और कपड़े उतारने लगा। सम्भवत वह उन्हे सुखाना चाहता होगा।
मृत व्यक्ति का एकाएक जीवित हो जाना एक महान आश्चर्य जनक घटना थी और एक बड़ा भारी रहस्य भी। जो श्री फरेलके मन मे कौतुहल भी उत्पन्न कर रहा था और आशका भी । फरेल के आदेश से उसी दम कुछ सशस्त्र सैनिको ने जाकर युवक को पकड लाकर श्री फरेल के सुपुर्द कर दिया। युवक के वहाँ आते ही श्री परेल ने प्रश्न किया-"वह वृद्ध कहाँ है ?" इस पर युवक हँसा जैसे इस गिरफ्तारी आदि का उसके
मन पर कोई प्रभाव ही न पडा हो। और फिर बोला "वह वृद्ध - मे ही हू।"