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[* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ .
किया है (जो मुद्रित हो गये हैं) और यह अनुवाद भी मूलाचार की गाथाओ का मस्कृत अनुष्टपश्लोको मे एकमी शैली मे ही है अत अमितगति कत ही जात होता है। इसे एक तरह से "सस्कृत मूलाचार" कहना चाहिये। वहत सी हस्तलिलित प्रतियो मे मूलाचार को यत्याचार नाम से भी लिखा है, अतः इस नाम से भी शास्त्र भण्डारो मे इस सस्कृत रुपान्तर ग्रथ की खोज होनी चाहिये।
आशाधरजी ने जो इसके उद्धरणो मे अमितगति का नाम नही दिया मा उन्होंने धर्मामृत ग्रथ की टीका मे अमितगति के अनेक ग्रथो के उद्धरण दिये है पर कही भी अमितगति का नाम नहीं दिया है अत' इन उद्धरणो मे भी ऐसा ही किया गया है।