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" ५६५. • १६६
मूलाचार का नरबत पद्यानुवाद ]
[ ४५.३ १५०-१४१ १४३ से १४६
.'५६२ १५३
५६३ १५६
"५६४ १६०-१६१ १६२ से १५ १६७
."५७ १५८ १६६
"५६८ १८७
.. ६२५ १६०-१६१ ""६.६ यहाँ जो पृष्ठ पम्या दी गई है वह माणिकचन्द्र ग्रन्चमाला में छपे अनगारधर्मामृत की है। इस प्रकार मूलाचार को उक्त ८६ गाथायें ऐमी है जिनके अनुवाद रूप से मस्कृत पद्य अनगारधर्मामृत को टोका मे उद्धत हुये है। ऐमा म लम पडता है कि-किमी ग्रन्थकार के द्वारा सस्कृत पद्यो मे सारे ही मूलाचार का भावानुवाद किया गया है। उमी के ये उद्धरण आशाधरजी ने दिये हैं। किन्तु सेद इस बात का है कि आशाधरजी ने इतने उद्धरणो मे काही मी न तो ग्रन्थकार का उल्लेख पिया और न ग्रन्थ के नाम फा हो । आशाधरजी से पूर्व रचित इस अन्य का शास्त्र भण्डारो में पता लगाना चाहिये। यह ग्रन्थ 'मी एक तरह से मूलाचार को सस्कृत पद्यमय टीका हो है। ग्रन्थ पठनीय और बड़ा उपयोगी जान पड़ता है। जहा तक मभावना है यह अन्य आचार्य अमितगति का होना चाहिये । अमितगति ने प्राकृत पचसग्रह और भगवती आराधना इन दो ग्रथो की गाथामो (आर्या छदो) का सस्कृत अनुष्टुप् श्लोको मे अनुवाद