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जैन खगोल विज्ञान ]
[ ४२३ झकझोर दिया है और अब वे यह कहने को बाध्य हो गएहै कि
सूर्य चलता है या पृथ्वी, यह विवाद महत्वहीन और निरर्थक है। दोनो मे से कुछ भी माना जा सकता है। कोई बाधा नहीं। प्रकृति अनंत धर्मात्मक होने से अति सूक्ष्म है अतः वास्तविकता का साक्षात्कार करना असभव-सा है।
लेखक का समाधान
खगोल के विषय मे वर्तमान विज्ञान या जेनेतर शास्त्रो की मान्यता गलत है या सही है इसको लेकर वह लेख नहीं लिखा गया है । जैन शास्त्रो मे इस विषय का वर्णन किस प्रकार से लिखा मिलता है यह दिखाने लो यह लेख लिखा गया है। यह बात मैंने उस लेखके प्रारम्भ मे ही प्रगट करदी है। इसलिए उस लेख मे अगर मैंने कही जैन शास्त्रों से विरुद्ध मनघडत, लिख दिण हो या कही अपनी बुद्धि की मदता से अंन शास्त्रो के वाक्यो का अर्थ यथार्थ न समझकर अन्यथा प्ररूपणा करदी हो, इस प्रकार की कोई बातें हो तो उसका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है और उसी का जबाब देना मेरा काम है। ऐसी सूरत में 'जैन खगोल टिशान की आलोचना" इस शीर्षक का लेख छपाना और उसमे उसके लेखक से जैन मान्यता को सिद्ध करने की मांग पेश करना अनधिकार चर्चा है और जिनवाणी को चुनौती देना है क्योंकि उसका विषेचन लेखक का नही जैन शास्त्रो का है। इसलिये समालोचक जी के लेख का उस्त शीर्षक अनुचित है। जैन मान्यता करे छोडिए इस विषय मे जेनेतर शास्त्र भी तो सबके सब एकमत नहीं है। समालोचक जी ने चन्द्रमा को सूर्य से नीचे माना है पर विष्णुपुराणमे ऊँचा माना है । भास्कराचार्य ने पृथ्वी को चलती मानी है, समालोचक