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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
होते रहे हैं जिन्होने भू-स्थिरता को ही मान्य किया है। हेनरी फास्टर ने सन् १६४८ मे एक लेख में लिखा है कि "विलियम एडगल ने ५० वर्षों के महान् प्रयत्न के वाद यह निर्णय प्रकट किया पृथ्वी थाली के समान चपटी है और इसके चारो ओर सूर्य भ्रमण करता है ।"
इसी तरह जे० मेकडोनल्ड ने भी सन् १६४६ मे अपने विस्तृत लेख मे यह लिखा है कि सूर्य गति करता है । और जो यह मानते है कि - पृथ्वी अपनी धुरी पर १ हजार मील प्रति घण्टे की गति से गमन करती है वह हास्यास्पद है ।
आधुनिक वैज्ञानिको से अभी भू-स्थिरवदियो के पूर्वोक्त प्रश्नो का ही यथोचित समाधान नही हो रहा है कि - सापेक्षवाद सामने आ उपस्थित हुआ जिसके प्रस्तुतकर्ता इस २० वी ईस्वी सदी के विश्व प्रसिद्ध गणित्ज्ञ वैज्ञानिक आईंस्टीन है | उन्होने बताया है कि - " गति व स्थिति केवल सापेक्ष धर्म है । 'प्रकृति' कुछ ऐसी है कि किसी भी ग्रह - पिण्ड की वास्तविक गति किसी भी प्रयोग द्वारा निश्चित रूप से नही बताई जा सकती । पृथ्वी की अपेक्षा मे सूर्य चलता है या सूर्य की अपेक्षा मे पृथ्वी चलती है । दोनों सिद्धात अपनी अपनी जगह ठीक है फिर भी पहला सिद्धात कुछ जटिल है और दूसरा सिद्धात सरल है ।
इस तरह भू- भ्रमणवाद पर जो बल दिया जा रहा है वह सिर्फ सामान्य जनता की सुविधा की दृष्टि से है । अत यह सुविधावाद भी एक तरह से सापेक्षिक ही हैं ।
आइन्स्टीन के सापेक्षवाद ने वैज्ञानिक के एकान्ताग्रह को