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जैन खगोल विज्ञान ]
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ही सदा एक स्थान पर ही क्यो दिखाई देता है ? पृथ्वी के साधारण: दैनिक भ्रमण से प्रतिदिन सूर्य पूर्व से पश्चिम मे जाता हुआ दिखता रहे और पृथ्वी के दैनिक वार्षिक भ्रमण मे भी
ध्रुवतारा ज्यो का त्यो स्थिर खड़ा रहे यह कैसे मान जाय ?
इन प्रश्नो और तर्कों का कोई समुचित उत्तर भू-भ्रमण वादियो के पास नही ।
इसके सवा भू - भ्रमण प्रत्यक्ष - बाधित भी है क्योकि सर्व देश काल मे सर्व प्राणियो को पृथ्वी की स्थिरता का ही अनुभव होता है । अनुमान से भी भू-भ्रमण का कोई निश्चय नही होता क्योकि उस प्रकार का कोई अविनाभावी हेतु नही देखा जाता । ( विशेष जानने के लिए - "पी० एल० ज्योग्राफी" ग्रन्थ द्रष्टव्य है ) ।
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इस भू-स्थिरता का सिद्धात सुदीर्घ काल तक मान्य और प्रचलित रहा किन्तु पाश्चात्य देशो में सर्वप्रथम १६ वी शती मे कोपरनिकस ने पृथ्वी को चर और सूर्य को स्थिर बताया । गेलिलिओ ने भी विभिन्न प्रमाणो से इसकी पुष्टि की किन्तु पोप लोगो ने इसे बाइबिल का अपमान बताया । परिणाम स्वरूप लिलिओ आदि को राजकीय दण्ड भोगने पडे । फिर भी यह मान्यता नये नये सिद्धातों की खोजो से उत्तरोत्तर बढती रही और पश्चिम को लाघकर यह पूर्व मे भी प्रचलित हो गई एव राज- मान्यता के साथ विद्यालयो मे पाठ्य विषय भी बन गई।
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इस प्रकार भूभ्रमण का सिद्धात काफी लोकप्रिय हो गया और सूर्य भ्रमण का सिद्धात प्राचीन ग्रन्थो का विषय रह गया । फिर भी बहुत से ऐसे पाश्चात्य विचारक विद्वान् भी