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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
लल्ल, भास्कर तथा महावीर आदि प्रसिद्ध गणिताचार्य इम विपय मे धर्मग्रन्थो की मान्यता के ही समर्थन मे रहे पर इस बीच आर्यभट्ट (वि० स० ५३३ आदि) कुछ गणिताचार्यों ने पृथ्वी को चर बताया। भारतवर्ष मे वह युग भी इस विषय के खडनमडन का रहा।
भू-स्थिर वादियो के जोरदार तर्क (प्रश्न) निम्नाकित थे -
१-अगर पृथ्वी चल है तो पक्षी सुवह अपने घोसलो को छोडकर शाम वही वापिस कसे आ जाते है ?
२-आकाश मे फेंके जाने वाले बाण विलीन क्यो नहीं हो जाते ? आकाश मे फेंकी गई वस्तु विषम-गति-शील और दिशान्त र क्यो नहीं हो जाती
३ पृथ्वी की गति का मद होना इसमे कारण माना जाय तो एक दिन-रात मे इस विस्तृत पृथ्वी का पूरा भ्रमण कैसे हो जायेगा?
इसके विपरीत अगर पृथ्वी का तीव्र वेग से घूमना मानते हो तो इससे उस पर इतनी प्रचड वायु चलेगी कि जिससे महल, मकान, वृक्ष पर्वतादि की चोटिया, ध्वजाए आदि सब छिन्नभिन्न हो जायेंगे। अतः पृथ्वी का भ्रमण किसी भी तरह सिद्ध नही होता।
४-पृथ्यी समान रूप से गति करती हुई वर्ष भर मे सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाती है तो ऋतुओ का परिवर्तन कैसे सभव है ?
५--अगर पृथ्वी चलती है तो ध्रुवतारा उत्तर की ओर