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जैन धर्म श्रेष्ठ क्यो है ? ]
[ ३८५ दिया है जैसा कि उनके इस पद्य से प्रकट है। यथा
"वालस्त्रीवृद्धमूर्खाणां नणां चारित्रकांक्षिणाम् । अनुग्रहार्थं तत्वज्ञे सिद्धान्त प्राकृत कृत.॥
जैन साहित्य के बाबत हम अधिक कुछ न लिखकर एक प्रसिद्ध अजैन विद्वान् श्रीमहामहोपाध्याय डॉ. "सतीशचन्द्र विद्याभूषण' सिद्धान्तमहोदधि कलकत्ता की सम्मति देते है, उसे देखिये
जैनियो की विचार पद्धति, यथार्थता, सूक्ष्मता, सुनिश्चितता, और सक्षिप्तता को देखकर मुझे आश्चर्य हुआ था। और मैंने धन्यवाद के साथ इस बात को नोट किया है कि किस प्रकार से प्राचीन न्याय पद्धति ने जैन नैयायिको द्वारा क्रमश उन्नति लाभकर वर्तमान रूप धारण किया है । ब्राह्मणो के न्याय की आधुनिक पद्धति जिसे नव्यन्याय कहते है और जिसे गणेश उपाध्याय ने १४वी शताब्दीमे जारी किया है वह जैन और बौद्धो के इस मध्यकालीन न्याय की तलछट से उत्पन्न हुई है। व्याकरण और कोश रचना विभाग मे शाकटायन, देवनदि और हेमचन्द्र आदि के प्रथ अपनी उपयोगिता और विद्वत्ता मे अद्वितीय हैं। प्राकृतभाषा सपूर्ण मधुमय सौदर्य को लिये हुए जैनियो की रचनामे ही प्रकट की गई है । ऐतिहासिक ससार मे तो जैनसाहित्य शायद जगत् के लिए सबसे अधिक काम की वस्तु है । यह इतिहास लेखको और पुरावृत्त विशारदो के लिये अनुसंधान की विपुल सामग्री प्रदान करने वाला है।"
आक्षेप परिहार १-हमारे अजैन भाई कह सकते हैं कि जिस जैन धर्म