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________________ ६ ३७७ जैन धर्म श्रेष्ठ क्यो है ] नयवाद एक ऐसा सिद्धात है जो कि सत्य की खोज मे पक्षपात रहित होने की प्रेरणा करता है। जैनदर्शन एक ऐसा अभेद्य किला है जिसका आजतक किसी प्रतिवादी से बाल भी बाका न होसका। पुराने ढर्रे के हिन्दू धर्मावलबी शास्त्री तो अबतक नही जानते कि जैनियो का स्याद्वाद किस चिडिया का नाम है। पा परीक्षा की प्रधानता अपने एक इसी बल पर वह स्पष्ट घोषणा करता है किपक्षपातो न मे वीरे न द्वष कपिलादिषु । . युक्ति मद्वचनं यस्य तस्य कार्य परिग्रह ॥ हरिभद्रसूरि] अर्थात-मेरे न तो वीर भगवान् मे पक्षपात है और न कपिलादि ऋषियो मे द्वष है । जिसके वचन युक्ति सहित हो उसे ही ग्रहण करना चाहिये । क्योकि "युक्तियुक्त प्रगृह्णीयाद् बालादपि विचक्षण " विचक्षण पुरुष वाजिब बात बालक की भी मानता है, इसी लिये जैन धर्म युक्ति और स्वतत्र विचारो से कभी भयभीत नहीं होता । वह इतर मतो की तरह ऐसा कभी नहीं कहता कि जो कुछ हम कहते हैं वही ठीक है। उस पर तर्क-वितर्क करने की जरूरत नहीं है । इस प्रकार “वाबावाक्य प्रमाण" की उसके यहा पूछ नहीं है । वह तो खुले रूप मे कहता है कि'निर्दोष कांचनं चेत् स्यात् परीक्षायां बिभेति किम्' असली सोना है, तो कसौटी का क्या डर है।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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