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[* जैन निबन्ध नायनी भाग:
अगमात्र भी भुन नी । बापटर नर जगदीश चन्द्र वीम ने नाकापनिनोगीयो अस्तित्व बनाकर पाश्चात्य विनानी नकार दिया और frमने तो यन्त्री द्वारा आरसीयोगामिद गर निगनाये हैं पर जैन गन्यो मे बहन माननीनगर नि गिनना है कि कम्पनि मेनीय ने ।
जैन आगमो मे निया है कि शब्द पुद्गन का गुण है जब f अन्य प्रानो में आपका गुण बनाया है। एमपर परFITोमे गहरा यादविवाद भी निगा मिलता है। किंतु बाण मन्द के फोनोग्राफ में भरे जाने व टेलीग्राफ रेदियो से दूर दागे पहा आधिगह अनायाम ही मावित हो गया कि नद पद्गली गो पर्याय है, आकाश को नहीं। तभी तो उसका जग तन्त रोका जाना प्रत्यक्ष मे दिनरहा है। न्यादि उदाहरणों
नाप है कि जनधर्मरामदातिक विवेचन भी विस्कूल यचार्य है। इटली के एक विद्वान् बा० एल० पी० टेनी टोरीसाहव इसी का ममर्थन करते हुये बतलाते हैं कि
"जैनदर्शन बहुत ही ऊंची पक्ति का है। इसके मुन्यनत्व विज्ञान शान के माधार पर रचेहये हैं। यह केवल मेरा अनुमान ही नहीं है बल्कि पूर्ण अनुभव है । ज्योज्यो पदार्थविज्ञान उन्नति करता जाता है त्यो-त्यो ही जैनधर्म के सिद्धात मिद्ध होते जाते हैं।"
जैनधर्म का तत्व और उपदेश वस्तु स्वरूप, प्राकृतिक नियम, न्याय शास्त्र, शक्यानुष्ठान और विज्ञानसिद्धात के अनुसार होने के कारण सत्य है। जैनियो का अनेकात और