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रात्रि - भोजन त्याग ]
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भावार्थ-दिन के आठवे भाग को जब कि दिवाकर मन्द हो जाता है ( रात होने के दो घडी पहले के समय को ) " नक्त" कहते है । नक्त व्रत का अर्थ रात्रि भोजन नही है । हे गणाधिप । बुद्धिमान् लोग उस समय को "नक्त" वताते है जिस समय एक मुहूर्त ( दो घडी ) दिन अवशेष रह जाता है । मैं नक्षत्र दर्शन के समय को "नक्त" नही मानता हूँ । और भी कहा है कि
अंभोदपटलच्छन्ने नाश्रन्ति रविमण्डले । अस्तंगते तु भुंजाना अहो भानो' सुसेवकाः ॥ मृते स्वजनमात्रेऽपि सूतक जायते किल । अस्तंगते दिवानाथे भोजनं क्रियते कथम् ॥
अर्थ - यह कैसा आश्चर्य है कि सूर्य भक्त जव सूर्य मेघो से ढक जाता है तब तो वे भोजन का त्याग कर देते है । परन्तु वही सूर्य जव अस्त दशा को प्राप्त होता है तव वे भोजन करते है । स्वजन मात्र के मर जाने पर भी जब लोग सूतक पालते है यानी उस दशा में अनाहारी रहते हैं तव दिवानाथ सूर्य के अस्त होने के बाद तो भोजन किया ही कैसे जा सकता है ? तथा कहा है कि
नैवाहुति न च स्नानं न श्राद्ध देवतार्चनम् । दानं वा विहितं रात्रौ भोजनं तु विशेषतः ॥
अर्थ - आहुति, स्नान, श्राद्ध, देवपूजन, दान और खास करके भोजन रात्रि मे नही करना चाहिए ।
कूर्मपुराण मे भी लिखा है कि