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[* जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ न ह्येत् सर्वभूतानि निन्द्रो निर्भयो भवेत् । न नक्तं चैव भक्षीयाद् रात्रौ ध्यानपरो भवेत् ॥
_ - २७ वां अध्याय ६४५ वां पृष्ठ अर्थ--मनुष्य सब प्राणियो पर द्रोह रहित रहे। निद्वंद्व और निर्भय रहे तथा रात को भोजन न करे और ध्यान मे तत्पर रहे । और भो ६५३ वे पृष्ठ पर लिखा है कि
"आदित्ये दर्शयित्वान्नं भुंजीत प्राडमुखे नर.।"
भावार्थ-सूर्य हो उस समय तक दिन मे गुरु या वडे ___ को दिखाकर पूर्व दिशा मे मुख करके भोजन करना चाहिये।
इस विषय मे आयुर्वेद का मुद्रा लेख भी यही है किहन्नाभिपद्मसंकोचश्चंडरोचिरपायत. । । अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि ॥
भावार्थ—सूर्य छिप जाने के बाद हृदय कमल और नाभिकमल दोनो सकुचित हो जाते है और सक्ष्म जीवो का भी भोजन के साथ भक्षण हो जाता है इसलिये रात मे भोजन न करना चाहिये।
रात्रि भोजन का त्याग करना कुछ भी कठिन नही है । जो महानुभाव यह जानते हैं कि-"जीवन के लिए भोजन है भोजन के लिए जीवन नही" वे रात्रि भोजन को नहिं करते