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पीठिकादि मंत्र और शासनदेव
कुछ पडितो का कहना है कि आदि पुराण मे भगवज्जिनसेन ने पीठिकादि मत्रो मे “सौधर्माय स्वाहा" "कल्पाधिपतये स्वाहा" "अनुचराय स्वाहा" इत्यादि सुरेन्द्र मत्र लिखे हैं। तथा अग्निकुमारो के इन्द्र और कुवेर का भी मत्रो मे उल्लेख किया है । ऐसा कथन करके आचार्य जिनसेन ने देवगति के देवो की पूजा करने का सकेत किया है उससे शासन देवो की पूजा करना सिद्ध होता है।
नीचे हम इस लेख मे इसी बात पर ऊहापोह करते है
आशाधरजी आदि कृत प्रतिष्ठा ग्रन्थो में चक्र श्वरी आदि २४ यक्षियो को शासन देवता और गौमुख आदि २४ यक्षो को शासन देव के नाम से लिखा है । इसके अलावा नवग्रह, दशदिनपाल, क्षेत्रपाल, जयादि देविये और रोहिणी आदि विद्या देविये इत्यादि देवदेवियो की यागमडल मे स्थापना कर उनकी प्रतिष्ठादि ग्रथो मे पूजा करने का कथन आता है। उनमे से भी किसी देव-देवी का नाम इन पीठिकादि मत्रो मे नही है। जब कि क्रियाकाडी ग्रन्थो मे अधिकतर इन्ही की पूजा-आराधना लिखी है तब जिनसेन का पीठिकादिमत्रो मे उनमे से किसी एक का भी उल्लेख न करना यह बताता है कि आचार्य श्री जिनसेन उक्त देव-देवियो की पूजा आराधना करने के पक्ष मे कतई नही थे।