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अजैन साहित्य मे जैन उल्लेख ... ]
सिर्फ काम विडवना से पीडित हैं ।
इस श्लोक मे योगिराट् भर्तृहरि ने सरागियो मे महादेव को और वीसरागियो मे जिनदेव को प्रधान बताया है ।
सस्ती ग्रन्थमाला दिल्ली से प्रकाशित मोक्ष मार्ग प्रकाशक मै पृ २०१ पर इस श्लोक को श्रृंगार शतक का ६७वा श्लोक और मथुरा के संस्करण मे पृ १२६ पर इसे श्रृगार शेतक का ७१वा श्लोक बताया है । किन्तु हमने भर्तृहरि के अनेक मुद्रित शतकत्रयो को देखा - बहुत सो मे तो - " न रहेगा वास न बजेगी बांसुरी” यह सोचकर इस श्लोक को विल्कुल निकाल ही दिया है देखो - ज्ञानसागर प्रेस बम्बई से सन् १६०२ मे प्रकाशित "भर्तृहरि शतकम्" (संस्कृत हिन्दी टीका युक्त) तथा सन् १६२० से १६२३ मे हरिदास एण्ड कम्पनी मथुरा से प्रकाशित - विस्तृत हिन्दी टोका युक्त) प्रसिद्ध, सचित्र सस्करण
कुछ संस्करणो मे यह श्लोक देने की तो कृपा की है किन्तु उसे इस तरह बदल कर रख दिया है:
एको रागिषु राजते प्रियतमादेहार्धहारी हरो । नोरागेष्वपि यो विमुक्तललनासगो न यस्मात्पर ॥ दुर्वारस्मर बाण पन्नग विष ज्वालावलीढो जन । शेषः काम विबितो हि विषयान्
मोक्तु च मोक्ष क्षमः ॥८३॥
देखो - सन् १६१६ मे निर्णयसागर प्रेस मुम्बई से प्रकाशित कृष्ण शास्त्रि कृत संस्कृत टीका सहित 'श्रृगार शतक' का चतुर्थ सस्करण ।