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अर्जन साहित्य मे जैन उल्लेख... ]
(४) शाकटायन ( जैन व्याकरण की स्वोपज्ञ अमोघवृत्ति (वि.स हवी शती ) मे अमरकोप का उल्लेख है ।
(५) " जैन वोधक" वर्ष ४३ अक ५ ( फरवरी १६३३) मे एक हस्तलिखित प्रति के अनुसार अमरकोष मे १२५ जन श्लोक दिये हैं और अमरसिह को जैन सिद्ध किया है एव उनको बौद्ध माने जाने का निरसन किया है ।
नीचे क्रमश सक्षेप मे इनकी समीक्षा की जाती है
(१) यह कथा किसी ने यो हो गढ डाली है इसमे अनेक ऊलजलूलताये है अतः यह विल्कुल अप्रामाणिक है । इसमे अमर सिंह को धनजय का साला बताया है जो निराधार है क्योकि धनजय ८६ विक्रम शतीके हैं जबकि अमरसिंह इनसे कम से कम चार-पाच सौ वर्ष पूर्व हुए हैं जैसा कि इतिहास से प्रमाणित है
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(क) ७वी वी विक्रम शती मे वौद्ध विद्वान् जिनेन्द्र बुद्रि काशिका विवरण पजिका में अमरकोप का " तत्र प्रधाने सिद्धांते" ||१८|| ( नानार्थ वर्ग, काड ३) प्रलोक उद्धृत किया है ।
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(ख) उज्जयिनी के गुणराट् ने ईसा की ६ठी शती मे अमरकोष का चीनी अनुवाद किया है ।
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(ग) क्षीर स्वामी ( शिवोपासक, ईस्वी ११वी शती) ने अमरकोषोद्घाटन मे लिखा है कि अमरसिंह चन्द्रव्याकरणकार चन्द्र गोमिन् से पूर्व हुए हैं । चन्द्रगोमिन् वसुराट् के गुरु और ४५० ईस्वी मे होने वाले बगाली, बौद्ध विद्वान् है ।
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(घ) धन्वन्तरि क्षपणकामरसिंह शकु वेताल भट्ट घटकपर कालिदासा ।