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[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
भगवान् बुद्ध और उनके अवातर भेदो के नाम दिये है फिर वैदिक देवी-देवताओ के नाम दिये है ।
(२) काड ३ नानार्थ वर्ग ३ के श्लोक ३१ मे "धर्मराजौ जिनयमों" पाठ दिया है इसमे जिन (बुद्ध) को प्रथम दिया ह और यम (वैदिक श्राद्ध देव) को वाद मे । अगर ग्रन्थकार चाहते तो 'यमजिनो' पाठ भी दे सकते थे इसमे छदोभग की भी आपत्ति नही थी किन्तु उनके तो जिन (बुद्ध) आराध्य थे अत. पहिले उन्हे स्थान दिया ।
( 3 ) यह लोकोक्ति प्रसिद्ध है कि- अमरसिंहो हि पापीयान् सर्वभाष्यमचूचुरत् अर्थात् - पापी अमरसिंह ने सारा भाष्य (पातजल महाभाप्य) चुरा लिया । अगर अमर सिंह वैदिक होते तो वैदिक विद्वान् कभी उनको पापी और भाप्य की चोरी करने वाला नही बताते ।
इनसे स्पष्ट है कि अमर सिंह बौद्ध विद्वान् थे । इसके वावजूद भी कुछ जन विद्वान् अमरसिंह को जैनधर्मानुयायी बताते है और अमरकोष को जैन कोष । इसके लिये उनकी युक्तिया निम्नाकित है
(१) किसी जैन ग्रन्थकार ने एक कथा दी है कि अमरसिंह नाममालाकार धनजय कवि के साले थे ।
(२) जैन शास्त्र भण्डारो मे अमरकोष की अनेक प्रतिया मिलती हैं ।
(३) अमरकोष पर जैन विद्वान् आशाधर (वि. १३ व . शती) ने टीका बनाई है ।