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अजैन साहित्य मे जैन उल्लेख". ]
अमसिंह किस संप्रदाय-विशेष के थे यह उन्होंने कही नहीं लिखा है किन्तु अमरकोप के सूक्ष्म अध्ययन और अन्य प्रमाणो से इसका निर्णय किया जा सकता है वही नीचे देखिये:अमरदीपिका टीका मे अमरकोप के मगलाचरण को बुद्ध वाची बताया है। इसी तरह क्षीर स्वामी (वैदिक) टीका मे भी मगलाचरण को जिन (बुद्ध) वाची ही बताया है। तथा वामनाचार्य-दुर्गाप्रसाद, काशीनाथ, शिवदत्त, एन जी देसाई, शीलस्कध वेवर आदि वैदिक, बौद्ध, अग्रेज विद्वानो ने अपने प्रस्तावना-निवन्धों मे अमरकोप कार को वौद्ध ही माना है इसके लिये इन्होने निन्नाकित ३ युक्तिया दी है -
(१) अमरसिंह ने देव विशेष के नामों में सर्वप्रथम
यदक्षर पद भ्रष्ट, स्वर व्यंजन वजित । तत्सर्वं क्षम्यता देवि, प्रसीद परमेश्वरि ॥ यावत्पृथ्वी रविर्यावत् यावच्चन्द्र हिमाचली । पठ्यमाना बुध स्तरव, देषा नन्दतु पुस्तिका ॥ यावच्छी वीतरागस्य, धर्मो जयति भूतले । विद्वन्दि वाच्यमानोऽय ग्रन्यस्तावद्विनन्दतु ॥ यावच्चन्द्र दिवाकरो ग्रहपती क्षोणी समुद्रा अपि । यावद् व्योम वितान सलिभतया दिक् चक्र माक्रामति ।। यावद् देहनिवामिनी पशुपते गोरी मुख चुम्वति । ताव तिष्ठतु कोष एष सुधिया कठेषु रत्नोपम ।।
नानाकवीना भुवि नाम कोषा । सन्त्येव शब्दार्थविदा प्रवधा । तथापि सूक्तेऽमरसिंह नाम्न । कवे रतीव प्रसृत मनो मे ।