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अजैन साहित्य में जैन उल्लेख और सांप्रदायिक संकीर्णता से उनका लोप
भमर कोष अमरकोष संस्कृत का एक जगविख्यात प्राचीन कोश प्रथ है । इसके कर्ता अमरसिंह हैं जैसाकि तीनों काडो के अन्त मे दिये " इत्यमरसिंह कृती नामलिंगानुशासने" श्लोक द्वारा प्रकट है। ग्रन्थकार ने ग्रन्थ के आरम्भ मे देवनामो मे प्रथम अपना नाम 'अमर' दिया है। इसी तरह ग्रन्थ के आदि मगलश्लोक मे भी "अमृताय च" के रूप मे 'अमर' नाम द्योतित किया है।
ग्रन्थ का नाम पूर्वोक्त श्लोकानुसार "नामलिंगानुशासन" है (जिसमे नाम और लिंग दोनो एक साथ बताये गये है जो इसकी अन्य कोशोसे खास विशेषता है, किन्तु ग्रंथकारके नाम पर इसका नाम अमरकोष प्रसिद्ध हो गया है और आज यह कोष संस्कृत जगत् मे वास्तव मे ही अमर हो गया है। इसमे ३ कोड होने से 'त्रिकाड कोश' और देवभाषा-सस्कृत मे होने से देव कोश भी इसके नाम है। इस पर संस्कृत को निम्नाकित टोकाये है -१ व्याख्या प्रदीप २. काशिका ३. अमरकोषोद्घाटन,