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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
स्व० पं• मिलापचन्द्रजी कटारिया ने अपने अध्ययन के बल पर जैन समाज के मूर्धन्य विद्वानों में स्थान प्राप्त किया था अध्ययन को उनको यह दृष्टि बडी पेनी थी। स्मारिका को अपने जीवन के प्रारंभ काल से ही उनका सहयोग मिला था। खेद है वे अब हमारे बीच नहीं रहे । जैन शास्त्रों का तलस्पर्शी अध्ययन रखने वाले विद्वानों को माला का एक मणिया टूट गया । पुरानी पीढी के विद्वान् एक एक कर काल कवलित हो रहे हैं और नए उनका स्थान ग्रहण करने को आ नही रहे है । निश्वय हो जैन समाज के लिये यह स्थिति शोचनीय और विचारणीय है ।
सम्बन्धित आचार्यों के काल निर्णय सम्बन्धी विवाद ह करने में प्रस्तुत रचना पर्याप्त अशो मे सहायक सिद्ध होगी ।