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[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भार्ग २
को पद्मनदि का शिष्य लिखाहै उसका तात्पर्य इतनाही समझना चाहिये कि पद्मनद के पास से उन्होने जैन शास्त्रो का अध्ययन किया था जिससे वे उनके विद्यागुरु लगते थे अत प्रभाचन्द्र ने विद्यागुरु के नाते पद्मनन्दि का उल्लेख किया है । इसके सिवा ग्रन्थ की प्रामाणिकता को जाहिर करने की दृष्टि से भी निर्ग्रन्थ गुरु का उल्लेख करना उन्होने आवश्यक समझा है । ( जिस तरह गृहस्थ मेधावी ने अपने श्रावकाचार मे जिनचन्द्र मुनि का उल्लेख किया है )
भास्कर नंदि
जिन्होने तत्वार्थ सूत्र पर सुखबोधा नाम की संस्कृत मे टीका लिखी उन भास्करनन्दि के समय का निर्णय भी अभ तक नही हो पाया है । इन्होने इस टीका के अंत मे प्रशस्ति f -खी है जिसमे केवल अपने गुरु और प्रगुरु का नाम मात्र लिखा है पर टीका का कोई समय नही दिया है ।
प्रशस्ति के जिन श्लोको मे भास्करनन्दि ने अपने प्रगुरु का नाम दिया है वह नाम अशुद्ध प्रतीत होता है, जिससे भास्करनन्दि का समय गडबड होरहा है, देखिये -
नोनिष्ठीवेन्न शेते वदति च न परं ह्येहि याहीति जातु । नोकंडू येत्गात्रं व्रजति न निशिनोद्घाटयेत् द्वार्न दत्त ॥ नावष्टाति किंचिद् गुणनिधिरितियो बद्धपर्यं कयोगः कृत्वासन्या समंतेशुभगतिरभवत्सर्वसाधुः स पूज्य ॥३॥ तस्यासीत्सुविशुद्धदृष्टि विभवः सिद्धांत पारं गतः, शिष्य श्रीजिनचंद्रनामकलितश्चारित्रभूषान्वित | शिष्यो भास्करनंदिनामविबुधस्तस्याभवत्तत्ववित् । तेनाकारि सुखादिबोधविषया तत्वार्थवृत्तिःस्फुटं ॥४॥