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रात्रि - भोजन त्याग ]
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आवश्यक है । यहाँ भोजन से मतलव लड्डू आदि खाद्य; इलायची, ताबूल आदि स्वाद्य, रबडी आदि लेहय, पानी आदि पेय इन चारो प्रकार के आहारो से है । रात्रि के समय "उक्त चार प्रकार के आहार के त्याग को रात्रि भोजन त्याग कहते हैं । शास्त्रकारो ने तो यहाँ तक जोर दिया है कि सूर्योदय और सूर्यास्त से दो घडी पूर्व भोजन करना भी रात्रि भोजन में शुमार किया गया है । यथा
वासरस्य मुखे चांत विमुच्य घटिकाद्वयम् । योऽशनं सम्यगाधत्ते तस्यानस्तमितव्रतम् ॥
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प्रथमानुयोग की कथनी पद्मपुराण मे कथन है- जिस समय लक्ष्मण जी जाने लगे तो उनकी नव विवाहिता वधू वनमाला ने कहा कि - " हे प्राणनाथ । मुझ अकेली को छोड कर जो आप जाने का विचार करते हो तो मुझ विरहिणी का क्या हाल होगा ?" तब लक्ष्मण जी क्या उत्तर देते है सुनिये -
स्ववधू लक्ष्मणः प्राह मंच मां वनमालिके ।
कार्ये त्वां लातुमेष्यामि देवादिशपथोऽस्तु मे ॥ २८ ॥
पुनरूचे तयेतोशः ब्रूहि चेन्नैमि लिप्येऽहं
कथमध्य प्रतोतया । रात्रिभुक्तेरघैस्तदा ॥ २६ ॥ धर्मसंग्रह श्रावकाचार
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भावार्थ - हे वनमाले । मुझे जाने दो, अभीष्ट कार्य के हो जाने पर मैं तुम्हे लेने के लिए अवश्य आऊँगा । मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अगर मैं अपने वचनों को पूरा न करूँ तो जो दोष हिसादि के करने से लगता है उसी
दोष का में भागी
होऊँ ।
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